अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
ग़ाफ़िल तुझे फ़िक्र आब-ओ-दाने की है
हस्ती के लिए ज़रूर इक दिन है फ़ना
आना तेरा दलील जाने की है
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शब्बीर का ग़म ये जिस के दिल पर होगा
खो दिल के मरज़ को ऐ तबीब-ए-उम्मत
क्यूँ-कर दिल-ए-ग़म-ज़दा न फ़रियाद करे
जो मर्तबा अहमद के वसी का देखा
असहाब ने पूछा जो नबी को देखा
ज़ाहिर वही उल्फ़त के असर हैं अब तक
अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है
आदम को अजब ख़ुदा ने रुत्बा बख़्शा
किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस
कुछ मुल्क-ए-अदम में रंज का नाम न था
आदम को ये तोहफ़ा ये हदिया न मिला
रुत्बा जिसे दुनिया में ख़ुदा देता है