आदम को अजब ख़ुदा ने रुत्बा बख़्शा
अदना के लिए मक़ाम-ए-आला बख़्शा
अक़्ल ओ हुनर ओ तमीज़ ओ जान ओ ईमाँ
उस एक कफ़-ए-ख़ाक को क्या क्या बख़्शा
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दुश्मन को भी दे ख़ुदा न औलाद का दाग़
गुलज़ार-ए-जहाँ से बाग़-ए-जन्नत में गए
बरहम है जहाँ अजब तलातुम है आज
रुत्बा जिसे दुनिया में ख़ुदा देता है
आला रुत्बे में हर बशर से पाया
उल्फ़त हो जिसे उसे वली कहते हैं
अहबाब से उम्मीद है बे-जा मुझ को
खो दिल के मरज़ को ऐ तबीब-ए-उम्मत
अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
अकबर ने जो घर मौत का आबाद किया
बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
ग़फ़लत में न खो उम्र कि पछताएगा