आला रुत्बे में हर बशर से पाया
अफ़ज़ल उन्हें ख़िज़्र-ए-राहबर से पाया
ये दर जो न मिलता तो भटकते फिरते
जन्नत का पता अली के घर से पाया
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पुतली की तरह नज़र से मस्तूर है तू
दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
हो जाती है सहल पेश-ए-दाना मुश्किल
गुलशन में सबा को जुस्तुजू तेरी है
किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस
मय-ख़ान-ए-कौसर का शराबी हूँ मैं
बालों पे ग़ुबार-ए-शेब ज़ाहिर है अब
अंदाज़-ए-सुख़न तुम जो हमारे समझो
उर्यां सर-ए-ख़ातून-ए-ज़मन है अब तक
आदम को ये तोहफ़ा ये हदिया न मिला
ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर
गुलशन में फिरूँ कि सैर-ए-सहरा देखूँ