अंदाज़-ए-सुख़न तुम जो हमारे समझो
जो लुत्फ़-ए-कलाम हैं वो सारे समझो
आवाज़ गिरफ़्ता गो है उस ज़ाकिर की
पहरों रोओ अगर इशारे समझो
Habib Jalib
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Gulzar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
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थे ज़ीस्त से अपनी हाथ धोए सज्जाद
अफ़ज़ल कोई मुर्तज़ा से हिम्मत में नहीं
बरहम है जहाँ अजब तलातुम है आज
अहबाब से उम्मीद है बे-जा मुझ को
पुतली की तरह नज़र से मस्तूर है तू
हो जाती है सहल पेश-ए-दाना मुश्किल
गुलज़ार-ए-जहाँ से बाग़-ए-जन्नत में गए
क़तरे हैं ये सब जिस के वो दरिया है अली
अख़्तर से भी आबरू में बेहतर है ये अश्क
शब्बीर का ग़म ये जिस के दिल पर होगा
ठोकर भी न मारेंगे अगर ख़ुद-सर है
इस्याँ से हूँ शर्मसार तौबा या-रब