बरहम है जहाँ अजब तलातुम है आज
सब रोते हैं दुनिया में ख़ुशी गुम है आज
चालीसवें तक गड़ा न लाशा जिस का
उस बे-कस-ओ-मज़लूम का चेहलुम है आज
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Gulzar
Habib Jalib
Wasi Shah
Rahat Indori
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1094) Peoples Rate This
ग़फ़लत में न खो उम्र कि पछताएगा
ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर
अफ़ज़ल कोई मुर्तज़ा से हिम्मत में नहीं
अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू
क्या दस्त-ए-मिज़ा को हाथ आई तस्बीह
अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
जिस पर कि नज़र लुत्फ़ की शब्बीर करें
ला-रैब बहिश्तियों का मरजा है ये
गुलशन में सबा को जुस्तुजू तेरी है
किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस
अब हिन्द की ज़ुल्मत से निकलता हूँ मैं
अख़्तर से भी आबरू में बेहतर है ये अश्क