ला-रैब बहिश्तीयों का मरजा है ये
सब जिस में भरे हैं गुल ओ मजमा है ये
देखे कोई मोमिनों के चेहरों की ज़िया
'मानी' भी है दंग वो मुरक़्क़ा है ये
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ला-रैब बहिश्तियों का मरजा है ये
दुनिया भी अजब सरा-ए-फ़ानी देखी
रुत्बा जिसे दुनिया में ख़ुदा देता है
किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस
उर्यां सर-ए-ख़ातून-ए-ज़मन है अब तक
अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
क़तरे हैं ये सब जिस के वो दरिया है अली
अकबर ने जो घर मौत का आबाद किया
अख़्तर से भी आबरू में बेहतर है ये अश्क
गुलशन में फिरूँ कि सैर-ए-सहरा देखूँ
आदम को अजब ख़ुदा ने रुत्बा बख़्शा
जो मर्तबा अहमद के वसी का देखा