अकबर ने जो घर मौत का आबाद किया
सुग़रा को दम-ए-नज़अ बहुत याद किया
लाशे पे कमर पकड़ के कहते थे हुसैन
तुम ने अली-अकबर हमें बर्बाद किया
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बिस्त-ओ-यकुम-ए-माह-ए-मोहर्रम है आज
अहबाब से उम्मीद है बे-जा मुझ को
बालों पे ग़ुबार-ए-शेब ज़ाहिर है अब
अख़्तर से भी आबरू में बेहतर है ये अश्क
उर्यां सर-ए-ख़ातून-ए-ज़मन है अब तक
थे ज़ीस्त से अपनी हाथ धोए सज्जाद
आदम को ये तोहफ़ा ये हदिया न मिला
क़तरे हैं ये सब जिस के वो दरिया है अली
अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
शब्बीर का ग़म ये जिस के दिल पर होगा
दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा