शब्बीर का ग़म ये जिस के दिल पर होगा
आँसू जो गिरेगा शक्ल-ए-गौहर होगा
पूछेगा ख़ुदा जब ऐसे दुर की क़ीमत
तब हश्र में जौहरी पयम्बर होगा
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खो दिल के मरज़ को ऐ तबीब-ए-उम्मत
ठोकर भी न मारेंगे अगर ख़ुद-सर है
फ़ुर्सत कोई साअत न ज़माने से मिली
बालों पे ग़ुबार-ए-शेब ज़ाहिर है अब
उर्यां सर-ए-ख़ातून-ए-ज़मन है अब तक
ऐ मोमिनो फ़ातिमा का प्यारा शब्बीर
बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू
बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा
खींचे मुझे मौत ज़िंदगानी की तरफ़
हर ग़ुंचे से शाख़-ए-गुल है क्यूँ नज़्र-ब-कफ़
अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है