फ़ुर्सत कोई साअत न ज़माने से मिली
बेगाने से राहत न यगाने से मिली
हक़्क़ा कि पलक-नवाज़ है ज़ात तिरी
जन्नत इन्हीं अश्कों के बहाने से मिली
Javed Akhtar
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शब्बीर का ग़म ये जिस के दिल पर होगा
हर-चंद कि ख़स्ता ओ हज़ीं है आवाज़
दामाद-ए-रसूल की शहादत है आज
दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
ऐ ख़ालिक़-ए-ज़ुल-फ़ज़्ल-ओ-करम रहमत कर
दश्त-ए-विग़ा में नूर-ए-ख़ुदा का ज़ुहूर है
क्यूँ-कर दिल-ए-ग़म-ज़दा न फ़रियाद करे
ज़ाहिर वही उल्फ़त के असर हैं अब तक
ला-रैब बहिश्तियों का मरजा है ये
अब वक़्त-ए-सुरूर- ओ फ़रहत-अंदोज़ी है
क़तरे हैं ये सब जिस के वो दरिया है अली