क्यूँ-कर दिल-ए-ग़म-ज़दा न फ़रियाद करे
जब मुल्क को चर्ख़-ए-पीर बर्बाद करे
माँगो ये दुआ कि फिर ख़ुदावंद-ए-करीम
उजड़ी हुई मम्लिकत को आबाद करे
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ला-रैब बहिश्तियों का मरजा है ये
ऐ ख़ालिक़-ए-ज़ुल-फ़ज़्ल-ओ-करम रहमत कर
दुश्मन को भी दे ख़ुदा न औलाद का दाग़
अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
बालों पे ग़ुबार-ए-शेब ज़ाहिर है अब
आदम को अजब ख़ुदा ने रुत्बा बख़्शा
मय-ख़ान-ए-कौसर का शराबी हूँ मैं
दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
पुतली की तरह नज़र से मस्तूर है तू
दामाद-ए-रसूल की शहादत है आज
अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
जो चश्म ग़म-ए-शह में सदा रोती है