क्या दस्त-ए-मिज़ा को हाथ आई तस्बीह
सुब्हान-अल्लाह क्या बनाई तस्बीह
आँसू नहीं रुकते हैं ग़म-ए-शह में 'अनीस'
आँखों से लगी है करबलाई तस्बीह
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जिस पर कि नज़र लुत्फ़ की शब्बीर करें
अफ़ज़ल कोई मुर्तज़ा से हिम्मत में नहीं
बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
राही तरफ़-ए-आलम-ए-बाला हूँ मैं
अंदाज़-ए-सुख़न तुम जो हमारे समझो
दामाद-ए-रसूल की शहादत है आज
कुछ मुल्क-ए-अदम में रंज का नाम न था
अब ज़ेर-ए-क़दम लहद का बाब आ पहुँचा
दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
थे ज़ीस्त से अपनी हाथ धोए सज्जाद
आला रुत्बे में हर बशर से पाया
अहबाब से उम्मीद है बे-जा मुझ को