राही तरफ़-ए-आलम-ए-बाला हूँ मैं
दुनिया से अदम को जाने वाला हूँ मैं
या-रब तिरा नाम-ए-पाक जपने के लिए
गोया इक हड्डियों की माला हूँ मैं
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हुशियार है सब से बा-ख़बर है जब तक
बिस्त-ओ-यकुम-ए-माह-ए-मोहर्रम है आज
बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
शब्बीर का ग़म ये जिस के दिल पर होगा
ठोकर भी न मारेंगे अगर ख़ुद-सर है
अफ़्ज़ूँ हैं बयाँ से मोजिज़ात-ए-हैदर
अख़्तर से भी आबरू में बेहतर है ये अश्क
इस्याँ से हूँ शर्मसार तौबा या-रब
उर्यां सर-ए-ख़ातून-ए-ज़मन है अब तक
कुछ मुल्क-ए-अदम में रंज का नाम न था
असहाब ने पूछा जो नबी को देखा
अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है