हुशियार है सब से बा-ख़बर है जब तक
बेदार है आलम पे नज़र है जब तक
पैदा है सरीर-ए-क्लिक से ये आवाज़
कर फ़िक्र-ए-सुख़न ज़बान-ए-तर है जब तक
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दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
दुश्मन को भी दे ख़ुदा न औलाद का दाग़
ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर
गुलशन में फिरूँ कि सैर-ए-सहरा देखूँ
अफ़्ज़ूँ हैं बयाँ से मोजिज़ात-ए-हैदर
जो चश्म ग़म-ए-शह में सदा रोती है
बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा
बरहम है जहाँ अजब तलातुम है आज
बे-दीनों को मुर्तज़ा ने ईमाँ बख़्शा
असहाब ने पूछा जो नबी को देखा
बिस्त-ओ-यकुम-ए-माह-ए-मोहर्रम है आज
पुतली की तरह नज़र से मस्तूर है तू