हो जाती है सहल पेश-ए-दाना मुश्किल
दिल ने न किसी अम्र को जाना मुश्किल
मदह शह-ए-दीं में है मगर दिल का ये क़ौल
है बहर का कूज़े में समाना मुश्किल
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अब ज़ेर-ए-क़दम लहद का बाब आ पहुँचा
बिस्त-ओ-यकुम-ए-माह-ए-मोहर्रम है आज
इस्याँ से हूँ शर्मसार तौबा या-रब
दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है
दामाद-ए-रसूल की शहादत है आज
अकबर ने जो घर मौत का आबाद किया
उर्यां सर-ए-ख़ातून-ए-ज़मन है अब तक
हर ग़ुंचे से शाख़-ए-गुल है क्यूँ नज़्र-ब-कफ़
ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर
अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
क्यूँ-कर दिल-ए-ग़म-ज़दा न फ़रियाद करे