गुलशन में फिरूँ कि सैर-ए-सहरा देखूँ
या मादन ओ कोह ओ दश्त ओ दरिया देखूँ
हर जा तिरी क़ुदरत के हैं लाखों जल्वे
हैरान हूँ दो आँखों से क्या क्या देखूँ
Ahmad Faraz
Gulzar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(5598) Peoples Rate This
कुछ मुल्क-ए-अदम में रंज का नाम न था
सोज़-ए-ग़म-ए-दूरी ने जला रक्खा है
अंदाज़-ए-सुख़न तुम जो हमारे समझो
ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर
मय-ख़ान-ए-कौसर का शराबी हूँ मैं
अश्कों में नहाओ तो जिगर ठंडे हों
असहाब ने पूछा जो नबी को देखा
ला-रैब बहिश्तियों का मरजा है ये
खींचे मुझे मौत ज़िंदगानी की तरफ़
आदम को अजब ख़ुदा ने रुत्बा बख़्शा
पुतली की तरह नज़र से मस्तूर है तू
इस्याँ से हूँ शर्मसार तौबा या-रब