अश्कों में नहाओ तो जिगर ठंडे हों
भीगे जो मिज़ा दीदा-ए-तर ठंडे हों
यूँ सीना ओ क़ल्ब सर्द हो जाएँगे
ख़स-ख़ाने में जैसे बाम-ओ-दर ठंडे हों
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दुनिया भी अजब सरा-ए-फ़ानी देखी
हर ग़ुंचे से शाख़-ए-गुल है क्यूँ नज़्र-ब-कफ़
क़तरे हैं ये सब जिस के वो दरिया है अली
अब हिन्द की ज़ुल्मत से निकलता हूँ मैं
उर्यां सर-ए-ख़ातून-ए-ज़मन है अब तक
बालों पे ग़ुबार-ए-शेब ज़ाहिर है अब
बे-दीनों को मुर्तज़ा ने ईमाँ बख़्शा
बादल आ के रो गए हाए ग़ज़ब
अकबर ने जो घर मौत का आबाद किया
अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
गुलज़ार-ए-जहाँ से बाग़-ए-जन्नत में गए
हो जाती है सहल पेश-ए-दाना मुश्किल