सोज़-ए-ग़म-ए-दूरी ने जिला रक्खा है
आहों ने कँवल दिल का बुझा रक्खा है
निकलो कहीं जल्द उम्र-ए-आख़िर है 'अनीस'
इस हिन्द-ए-सियह-बख़्त में क्या रक्खा है
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अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
ऐ मोमिनो फ़ातिमा का प्यारा शब्बीर
आला रुत्बे में हर बशर से पाया
जिस पर कि नज़र लुत्फ़ की शब्बीर करें
खो दिल के मरज़ को ऐ तबीब-ए-उम्मत
जो मर्तबा अहमद के वसी का देखा
कुछ मुल्क-ए-अदम में रंज का नाम न था
ठोकर भी न मारेंगे अगर ख़ुद-सर है
हर-चंद कि ख़स्ता ओ हज़ीं है आवाज़
ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर
बालों पे ग़ुबार-ए-शेब ज़ाहिर है अब
मय-ख़ान-ए-कौसर का शराबी हूँ मैं