कुछ मुल्क-ए-अदम में रंज का नाम न था
मालूम हमें अपना सर-अंजाम न था
आए जो यहाँ तो बस हुआ ये साबित
इक मौत से मिलना था कोई काम न था
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सर खींच न शमशीर-ए-कशीदा की तरह
क्यूँ-कर दिल-ए-ग़म-ज़दा न फ़रियाद करे
खो दिल के मरज़ को ऐ तबीब-ए-उम्मत
अख़्तर से भी आबरू में बेहतर है ये अश्क
ऐ मोमिनो फ़ातिमा का प्यारा शब्बीर
अल्लाह अल्लाह इज़्ज़-ओ-जाह-ए-ज़ाकिर
बिस्त-ओ-यकुम-ए-माह-ए-मोहर्रम है आज
ला-रैब बहिश्तियों का मरजा है ये
इतना न ग़ुरूर कर कि मरना है तुझे
जो मर्तबा अहमद के वसी का देखा
अफ़्ज़ूँ हैं बयाँ से मोजिज़ात-ए-हैदर
क्या दस्त-ए-मिज़ा को हाथ आई तस्बीह