गुलशन में सबा को जुस्तुजू तेरी है
बुलबुल की ज़बान पे गुफ़्तुगू तेरी है
हर रंग में जल्वा है तेरी क़ुदरत का
जिस फूल को सूँघता हूँ बू तेरी है
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
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Anwar Masood
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Wasi Shah
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
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अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
जिस पर कि नज़र लुत्फ़ की शब्बीर करें
अकबर ने जो घर मौत का आबाद किया
इतना न ग़ुरूर कर कि मरना है तुझे
ज़ाहिर वही उल्फ़त के असर हैं अब तक
अब ख़्वाब से चौंक वक़्त-ए-बेदारी है
उल्फ़त हो जिसे उसे वली कहते हैं
हर-चंद कि ख़स्ता ओ हज़ीं है आवाज़
उर्यां सर-ए-ख़ातून-ए-ज़मन है अब तक
बे-दीनों को मुर्तज़ा ने ईमाँ बख़्शा
जो चश्म ग़म-ए-शह में सदा रोती है
किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस