ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर
असहाब ने पूछा जो नबी को देखा
अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
जो मर्तबा अहमद के वसी का देखा
आदम को अजब ख़ुदा ने रुत्बा बख़्शा
अख़्तर से भी आबरू में बेहतर है ये अश्क
ला-रैब बहिश्तियों का मरजा है ये
हर-चंद कि ख़स्ता ओ हज़ीं है आवाज़
सोज़-ए-ग़म-ए-दूरी ने जला रक्खा है
आँख अब्र-ए-बहारी से लड़ी रहती है
बे-दीनों को मुर्तज़ा ने ईमाँ बख़्शा
हुशियार है सब से बा-ख़बर है जब तक