दुख में हर शब कराहता हूँ या-रब
अब ज़ीस्त के दिन निबाहता हूँ या-रब
तालिब ज़र-ओ-माल के हैं सब दुनिया में
मैं तुझ से तुझी को चाहता हूँ या-रब
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कुछ मुल्क-ए-अदम में रंज का नाम न था
जो मर्तबा अहमद के वसी का देखा
सर खींच न शमशीर-ए-कशीदा की तरह
दिल ने ग़म-ए-बे-हिसाब क्या क्या देखा
पुतली की तरह नज़र से मस्तूर है तू
ग़फ़लत में न खो उम्र कि पछताएगा
सोज़-ए-ग़म-ए-दूरी ने जला रक्खा है
बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा
अब गर्म ख़बर मौत के आने की है
इतना न ग़ुरूर कर कि मरना है तुझे
गुलशन में सबा को जुस्तुजू तेरी है
क्या दस्त-ए-मिज़ा को हाथ आई तस्बीह