हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद
वर्ना बाक़ी है ताक़त-ए-परवाज़
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चाक की ख़्वाहिश अगर वहशत ब-उर्यानी करे
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
दर-ख़ूर-ए-क़हर-ओ-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
थी ख़बर गर्म कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुर्ज़े
हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया
बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल
ग़लती-हा-ए-मज़ामीं मत पूछ
क़त्अ कीजे न तअ'ल्लुक़ हम से
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
चलता हूँ थोड़ी दूर हर इक तेज़-रौ के साथ
'ग़ालिब' तिरा अहवाल सुना देंगे हम उन को