जम्अ करते हो क्यूँ रक़ीबों को
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ
Wasi Shah
Allama Iqbal
Habib Jalib
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Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
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न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा
है पर-ए-सरहद-ए-इदराक से अपना मसजूद
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
बंदगी में भी वो आज़ादा ओ ख़ुद-बीं हैं कि हम
जान तुम पर निसार करता हूँ
एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिखा था सो भी मिट गया
लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और
उधर वो बद-गुमानी है इधर ये ना-तवानी है
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है