दिल्ली तेरी आँख में तिनका
''क़ुतुब-मीनार''
दिल्ली तेरे दिल का पत्थर
लाल-क़िला
दिल्ली तेरे बटवे में
'ग़ालिब' का मज़ार
रहने दे
बूढ़ी दिल्ली
कपड़े न उतार
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रखते हो अगर आँख तो बाहर से न देखो
गुल-दान में गुलाब की कलियाँ महक उठीं
दवा कोई क्या काम लिखूँ
न जाने दिल कहाँ रहने लगा है
ये कहाँ दोस्तों में आ बैठे
और फिर यूँ होगा
अब न 'ग़ालिब' से शिकायत है न शिकवा 'मीर' का
आसमान पर जा पहुँचूँ
और बाज़ार से क्या ले जाऊँ
ज़मीं कहीं भी न थी चार-सू समुंदर था
इत्तिफ़ाक़
पहला ख़ुदा