वो जंगलों में दरख़्तों पे कूदते फिरना
बुरा बहुत था मगर आज से तो बेहतर था
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गर्मी
माना कि तू ज़हीन भी है ख़ूब-रू भी है
और बाज़ार से क्या ले जाऊँ
ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं
मिला हमें बस एक ख़ुदा
अच्छे दिन कब आएँगे
यक्का उलट के रह गया घोड़ा भड़क गया
तिरा न मिलना अजब गुल खिला गया अब के
दिल है प्यासा हुसैन के मानिंद
ज़मीं छोड़ने का अनोखा मज़ा
शांति की दुकानें खोली हैं
सामने दीवार पर कुछ दाग़ थे