उतार फेंकूँ बदन से फटी पुरानी क़मीस
बदन क़मीस से बढ़ कर कटा-फटा देखूँ
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Rahat Indori
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जाते जाते देखना पत्थर में जाँ रख जाऊँगा
नींद
रात के मुँह पर उजाला चाहिए
डिप्रेशन
ऐसा हुआ नहीं है पर ऐसा न हो कहीं
उन को गुनाह करते हुए मैं ने जा लिया
खिड़कियों से झाँकती है रौशनी
सर्दी में दिन सर्द मिला
तिरा न मिलना अजब गुल खिला गया अब के
उठते हुए क़दमों की धमक आने लगी है
शेर तो सब कहते हैं क्या है
इत्तिफ़ाक़