खिड़कियों से झाँकती है रौशनी
बत्तियाँ जलती हैं घर घर रात में
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Gulzar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(427) Peoples Rate This
माना कि तू ज़हीन भी है ख़ूब-रू भी है
धूप में सब रंग गहरे हो गए
चील का साया
ऐसा हो
सफ़र में सोचते रहते हैं छाँव आए कहीं
मुझे उन जज़ीरों में ले जाओ
पढ़ के हैराँ हूँ ख़बर अख़बार में
यक्का उलट के रह गया घोड़ा भड़क गया
काँटे की तरह सूख के रह जाओगे 'अल्वी'
इस की बात का पाँव न सर
नज़रों से नापता है समुंदर की वुसअतें
कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए