माना कि तू ज़हीन भी है ख़ूब-रू भी है
तुझ सा न मैं हुआ तो भला क्या बुरा हुआ
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Gulzar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(591) Peoples Rate This
काँटे की तरह सूख के रह जाओगे 'अल्वी'
मैं अपने आप से डरने लगा था
कितना मुश्किल है ज़िंदगी करना
रात पड़े घर जाना है
शोर साहिल का समुंदर में न था
वो जंगलों में दरख़्तों पे कूदते फिरना
इक याद रह गई है मगर वो भी कम नहीं
दिल का आईना हुआ जाता है धुँदला धुँदला
रात मिली तन्हाई मिली और जाम मिला
और फिर यूँ होगा
उस से मिले ज़माना हुआ लेकिन आज भी
इत्तिफ़ाक़