उस से मिले ज़माना हुआ लेकिन आज भी
दिल से दुआ निकलती है ख़ुश हो जहाँ भी हो
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(665) Peoples Rate This
कभी तुझ से ऐसा भी याराना था
अब न 'ग़ालिब' से शिकायत है न शिकवा 'मीर' का
ढूँडता हूँ मैं ज़मीं अच्छी सी
डिप्रेशन
ढूँडने में भी मज़ा आता है
ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं
डूबने से पहले
बहुत नेक बंदे हैं अब भी तिरे
हुआ चली तो मिरे जिस्म ने कहा मुझ को
वोल्फ-मैन
गवाही देता वही मेरी बे-गुनाही का
ड्रैकुला