ढूँडता हूँ मैं ज़मीं अच्छी सी
ये बदन जिस में उतारा जाए
Jaun Eliya
Wasi Shah
Javed Akhtar
Anwar Masood
Gulzar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(536) Peoples Rate This
कतबा
यक्का उलट के रह गया घोड़ा भड़क गया
पर तोल के बैठी है मगर उड़ती नहीं है
बरसों घिसा-पिटा हुआ दरवाज़ा छोड़ कर
गर्मी
उठी कुछ ऐसे बदन की ख़ुश्बू
चला जाऊँगा जैसे ख़ुद को तन्हा छोड़ कर 'अल्वी'
इस शहर में कहीं पे हमारा मकाँ भी हो
एक बच्चा
कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए
रोज़ कहता है हवा का झोंका
तीसरी आँख