ढूँडने में भी मज़ा आता है
कोई शय रख के भुला दी जाए
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ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं
हुआ चली तो मिरे जिस्म ने कहा मुझ को
इक याद रह गई है मगर वो भी कम नहीं
अच्छे दिन कब आएँगे
इत्तिफ़ाक़
घर से बाहर किस बला का शोर था
हवा सर्द है
कहीं खो न जाए क़यामत का दिन
मेरे सामने
गिरह में रिश्वत का माल रखिए
ख़्वाब में एक मकाँ देखा था
खिलौने