अच्छे दिन कब आएँगे
क्या यूँ ही मर जाएँगे
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ऐसा हंगामा न था जंगल में
वो दिन कितना अच्छा था
उस से भी मिल कर हमें मरने की हसरत रही
बिना मुर्ग़े के पर झटकती हैं
मैं अपना नाम तिरे जिस्म पर लिखा देखूँ
इक दिया देर से जलता होगा
दिन भर के दहकते हुए सूरज से लड़ा हूँ
जन्म दिन
और बाज़ार से क्या ले जाऊँ
अचानक तिरी याद का सिलसिला
बदन का फ़ैसला
आगे मत सोचो