इक दिया देर से जलता होगा
साथ थोड़ी सी हवा ले जाऊँ
Javed Akhtar
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Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Rahat Indori
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कोई बैंड-बाजा सा कानों में था
हर इक झोंका नुकीला हो गया है
जाते जाते देखना पत्थर में जाँ रख जाऊँगा
आग पानी से डरता हुआ मैं ही था
पहला ख़ुदा
घोड़े पर इक लाश
'अल्वी' ने आज दिन में कहानी सुनाई थी
बिना मुर्ग़े के पर झटकती हैं
घर ने अपना होश सँभाला दिन निकला
उस से भी मिल कर हमें मरने की हसरत रही
देखा तो सब के सर पे गुनाहों का बोझ था
लबों पर यूँही सी हँसी भेज दे