ये बदन
जिसे मैं
बेहतरीन ग़िज़ाएँ खिलाता रहा
पानी की जगह
शराब पिलाता रहा
यही बदन
मुझ से कहता है
जाओ
दफ़ा हो जाओ
जन्नत के मज़े उड़ाओ
कि दोज़ख़ के अज़ाब उठाओ
मेरी बला से
मैं तो अब
क़ब्र में सो रहूँगा
मिट्टी हूँ
मिट्टी का हो रहूँगा!!
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यार आज मैं ने भी इक कमाल करना है
हज़ारों लाखों दिल्ली में मकाँ हैं
ऐसा हंगामा न था जंगल में
रात मिली तन्हाई मिली और जाम मिला
गवाही देता वही मेरी बे-गुनाही का
बत्ती बुझा के हीरो हीरोइन लिपट गए
अकेली औरत और टी-वी
पहली बूँद गिरी टिप से
आगे मत सोचो
दिल्ली
परिंदे दूर फ़ज़ाओं में खो गए 'अल्वी'
दोनों के दिल में ख़ौफ़ था मैदान-ए-जंग में