बत्ती बुझा के हीरो हीरोइन लिपट गए
क़िस्सा बहुत ही फिर तो मज़ेदार हो गया
Gulzar
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चला जाऊँगा जैसे ख़ुद को तन्हा छोड़ कर 'अल्वी'
ग़ज़ल कही है कोई भाँग तो नहीं पी है
कितना मुश्किल है ज़िंदगी करना
घर में सामाँ तो हो दिलचस्पी का
'अल्वी' ख़्वाहिश भी थी बाँझ
आगे मत सोचो
मछली की बू
दिल्ली
परिंदे दूर फ़ज़ाओं में खो गए 'अल्वी'
नज़रों से नापता है समुंदर की वुसअतें
हर वक़्त खिलते फूल की जानिब तका न कर
दुख का एहसास न मारा जाए