ग़ज़ल कही है कोई भाँग तो नहीं पी है
मुशाइरे में तरन्नुम से क्यूँ सुनाऊँ मैं
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दवा कोई क्या काम लिखूँ
बाएँ आँख में तिल वाले की ज़बानी
हम से जो आगे गए कितने मेहरबान थे
और कोई चारा न था और कोई सूरत न थी
इक तस्वीर तजरीदी
यूँही हम पर सब के एहसाँ हैं बहुत
लड़की अच्छी है 'अल्वी'
आँख में दहशत न थी हाथ में ख़ंजर न था
दिन में परियाँ क्यूँ आती हैं
रखते हो अगर आँख तो बाहर से न देखो
सर्दी में दिन सर्द मिला
यूँ तो कम कम थी मोहब्बत उस की