घर ने अपना होश सँभाला दिन निकला
खिड़की में भर गया उजाला दिन निकला
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(566) Peoples Rate This
मुँह-ज़बानी क़ुरआन पढ़ते थे
यक्का उलट के रह गया घोड़ा भड़क गया
चाक कर लो अगर गिरेबाँ है
आसमान पर जा पहुँचूँ
रौ में है रख़्श-ए-उम्र
अब जिधर भी जाते हैं
डिप्रेशन
आँखें खोलो ख़्वाब समेटो जागो भी
सुब्ह से खोद रहा हूँ घर को
तीसरी आँख खुलेगी तो दिखाई देगा
देखा न होगा तू ने मगर इंतिज़ार में
इक याद रह गई है मगर वो भी कम नहीं