आँखें खोलो ख़्वाब समेटो जागो भी
'अल्वी' प्यारे देखो साला दिन निकला
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ख़ाली मकान
आँख में दहशत न थी हाथ में ख़ंजर न था
नींद रातों की उड़ा देते हैं
हर इक झोंका नुकीला हो गया है
दिन इक के बा'द एक गुज़रते हुए भी देख
परिंदे दूर फ़ज़ाओं में खो गए 'अल्वी'
इस की बात का पाँव न सर
जाती हुई लड़की को सदा देना चाहिए
घर
उतार फेंकूँ बदन से फटी पुरानी क़मीस
शरीफ़े के दरख़्तों में छुपा घर देख लेता हूँ
अब के बरसात में पानी आए