आज फिर मुझ से कहा दरिया ने
क्या इरादा है बहा ले जाऊँ
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हवा सर्द है
बरसों घिसा-पिटा हुआ दरवाज़ा छोड़ कर
दिन में परियाँ क्यूँ आती हैं
बिना मुर्ग़े के पर झटकती हैं
जल मरने से पहले
इक याद रह गई है मगर वो भी कम नहीं
पहली बूँद गिरी टिप से
धूप ने गुज़ारिश की
यार आज मैं ने भी इक कमाल करना है
ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं
वक़्त
तीसरी आँख