ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं
टेबल पर सर रख कर सो जाता हूँ मैं
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आग अपने ही लगा सकते हैं
रात मिली तन्हाई मिली और जाम मिला
यादें
कोई मौसम हो भले लगते थे
सुब्ह से खोद रहा हूँ घर को
डूबने से पहले
दिन में परियाँ क्यूँ आती हैं
दिन इक के बा'द एक गुज़रते हुए भी देख
मैं नाहक़ दिन काट रहा हूँ
मेरे सामने
बिखेर दे मुझे चारों तरफ़ ख़लाओं में
मैं अपने आप से डरने लगा था