पहली बूँद गिरी टिप से
फिर सब कुछ पानी में था
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रौशनी कुछ तो मिले जंगल में
मुँह-ज़बानी क़ुरआन पढ़ते थे
क़ुर्ब ओ बोद
गर्मी
यूँ तो कम कम थी मोहब्बत उस की
शांति की दुकानें खोली हैं
कौन?
शिकस्त
रखते हो अगर आँख तो बाहर से न देखो
दिन इक के बा'द एक गुज़रते हुए भी देख
दिल है प्यासा हुसैन के मानिंद
ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं