मैं नाहक़ दिन काट रहा हूँ
कौन यहाँ सौ साल जिया है
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Anwar Masood
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कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए
सर्दी में दिन सर्द मिला
बाज़ार के दामों की शिकायत है हर इक को
उठते हुए क़दमों की धमक आने लगी है
हैरान मत हो तैरती मछली को देख कर
आँखें खोलो ख़्वाब समेटो जागो भी
पर तोल के बैठी है मगर उड़ती नहीं है
अंधेरा है कैसे तिरा ख़त पढ़ूँ
ख़ुदा
'अल्वी' ये मो'जिज़ा है दिसम्बर की धूप का
ज़मीं कहीं भी न थी चार-सू समुंदर था
गिरह में रिश्वत का माल रखिए