अंधेरा है कैसे तिरा ख़त पढ़ूँ
लिफ़ाफ़े में कुछ रौशनी भेज दे
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रात पड़े घर जाना है
गर्मी
रोज़ कहता है हवा का झोंका
शरीफ़े के दरख़्तों में छुपा घर देख लेता हूँ
क्या कहते क्या जी में था
आया है एक शख़्स अजब आन-बान का
तारीफ़ सुन के दोस्त से 'अल्वी' तू ख़ुश न हो
बत्ती बुझा के हीरो हीरोइन लिपट गए
शांति की दुकानें खोली हैं
इस शहर में कहीं पे हमारा मकाँ भी हो
रखते हो अगर आँख तो बाहर से न देखो