तारीफ़ सुन के दोस्त से 'अल्वी' तू ख़ुश न हो
उस को तिरी बुराइयाँ करते हुए भी देख
Rahat Indori
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अब जिधर भी जाते हैं
इधर रहा हूँ उधर रहा हूँ
सदियों से किनारे पे खड़ा सूख रहा है
नहा कर भीगे बालों को सुखाती
उस से भी मिल कर हमें मरने की हसरत रही
मशवरा
रौ में है रख़्श-ए-उम्र
शांति की दुकानें खोली हैं
ज़मीं कहीं भी न थी चार-सू समुंदर था
इब्न-ए-मरयम
गली में कोई घर अच्छा नहीं था
घर ने अपना होश सँभाला दिन निकला