नहा कर भीगे बालों को सुखाती
छतों पर लड़कियाँ अच्छी लगी हैं
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Allama Iqbal
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Rahat Indori
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Habib Jalib
Gulzar
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उन दिनों घर से अजब रिश्ता था
दिन इक के बा'द एक गुज़रते हुए भी देख
धूप ने गुज़ारिश की
दवा कोई क्या काम लिखूँ
रोटी
देखा न होगा तू ने मगर इंतिज़ार में
क्या कहते क्या जी में था
देखा तो सब के सर पे गुनाहों का बोझ था
मैं उस के बदन की मुक़द्दस किताब
कोई मौसम हो भले लगते थे
दरवाज़े पर पहरा देने
रात मिली तन्हाई मिली और जाम मिला