देखा न होगा तू ने मगर इंतिज़ार में
चलते हुए समय को ठहरते हुए भी देख
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Gulzar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(576) Peoples Rate This
नहा कर भीगे बालों को सुखाती
ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं
न जाने दिल कहाँ रहने लगा है
लबों पर यूँही सी हँसी भेज दे
रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू
रात कौन आया था
बिखेर दे मुझे चारों तरफ़ ख़लाओं में
और बाज़ार से क्या ले जाऊँ
पढ़ के हैराँ हूँ ख़बर अख़बार में
मगर मैं ख़ुदा से कहूँगा
खिड़कियों से झाँकती है रौशनी
शोर साहिल का समुंदर में न था