मैं उस के बदन की मुक़द्दस किताब
निहायत अक़ीदत से पढ़ता रहा
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इंतिक़ाम
यक्का उलट के रह गया घोड़ा भड़क गया
यादें
कहीं खो न जाए क़यामत का दिन
ढूँडने में भी मज़ा आता है
अचानक तिरी याद का सिलसिला
मौत न आई तो 'अल्वी'
यूँही हम पर सब के एहसाँ हैं बहुत
नींद आए तो
मैं नाहक़ दिन काट रहा हूँ
अच्छे दिन कब आएँगे
अब न 'ग़ालिब' से शिकायत है न शिकवा 'मीर' का