धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की
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इधर रहा हूँ उधर रहा हूँ
उसे मैं ने भी कल देखा था 'अल्वी'
गली में कोई घर अच्छा नहीं था
अपना घर आने से पहले
आगे मत सोचो
सफ़र में सोचते रहते हैं छाँव आए कहीं
ऐसा हुआ नहीं है पर ऐसा न हो कहीं
उठी कुछ ऐसे बदन की ख़ुश्बू
दुख का एहसास न मारा जाए
लम्बी सड़क पे दूर तलक कोई भी न था
काँटे की तरह सूख के रह जाओगे 'अल्वी'
बस के नीचे कोई नहीं आता फिर भी