लम्बी सड़क पे दूर तलक कोई भी न था
पलकें झपक रहा था दरीचा खुला हुआ
Jaun Eliya
Rahat Indori
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Gulzar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(623) Peoples Rate This
कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए
मैं उस के बदन की मुक़द्दस किताब
एक शाम बाग़ में
अंधेरा है कैसे तिरा ख़त पढ़ूँ
बदन का फ़ैसला
इक याद रह गई है मगर वो भी कम नहीं
कतबा
पर तोल के बैठी है मगर उड़ती नहीं है
रात पड़े घर जाना है
गली में कोई घर अच्छा नहीं था
शिकस्त
उस से भी मिल कर हमें मरने की हसरत रही