नन्हे पौदों के हाथों में रंग-बिरंगे जाम
छतनारे पेड़ों पे गिरती चिड़ियों का कोहराम
बाग़, बाग़ में हौज़, हौज़ में फ़व्वारे का पेड़
पत्थर की कुर्सी पर बैठी जलती बुझती शाम
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Gulzar
Anwar Masood
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Parveen Shakir
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आगे मत सोचो
बहुत नेक बंदे हैं अब भी तिरे
हज़ारों लाखों दिल्ली में मकाँ हैं
इस भरी दुनिया से वो चल दिया चुपके से यूँ
मुझे उन जज़ीरों में ले जाओ
और फिर यूँ होगा
दिल्ली
शरीफ़े के दरख़्तों में छुपा घर देख लेता हूँ
लोग कहते हैं कि मुझ सा था कोई
हाए वो लोग जो देखे भी नहीं
तलाश
रात मिली तन्हाई मिली और जाम मिला